Monday, June 15, 2009


गुरुगीता शिष्यों का हृदय गीत है। गीतों की गूँज हमेशा हृदय के आँगन में ही अंकुरित होती है। मस्तिष्क में तो सदा तर्कों के संजाल रचे जाते हैं। मस्तिष्क की सीमा बुद्धि की चहारदीवारी तक है, पर हृदय की श्रद्धा सदा विराट और असीम है। मनुष्य में गुरु ढूंढ़ लेना और गुरु में परमात्मा को पहचान लेना हृदय की श्रद्धा का ही चमत्कार है।

गुरुगीता के महामंत्र इसी चमत्कारी श्रद्धा से सने हैं। इनकी अनोखी-अनूठी सामर्थ्य का अनुभव कभी भी कर सकते हैं। योगेश्वर श्रीकृष्ण के वचन हैं- "श्रद्धावान लभते ज्ञानम्" अर्थात जो श्रद्धावान हैं, वही ज्ञान पाते हैं। यह श्रद्धा बड़ी दुस्साहस की बात है। कमजोर के बस की बात नहीं हैं, बलवान की बात है। श्रद्धा ऐसी दीवानगी है की चारों तरफ़ मरुस्थल हो और कहीं हरियाली का नाम न दिखाई पड़ता हो तब भी श्रद्धा भरोसा करती है की हरियाली है, फूल खिलते हैं। जब जल की कहीं कण भी न दिखाई देती हो, तब भी श्रद्धा मानती है की जल के झरने हैं, प्यास तृप्त होती है। जब चारो तरफ़ पतझड़ हो, तब भी श्रद्धा में बसंत ही होती है।

इस बसंत में भक्ति के गीत गूंजते हैं, समर्पण का सुरीला संगीत महकता है। जिनके हृदय भक्ति से सिक्त हैं, गुरुगीता के महामंत्र उनके जीवन में सभी चमत्कार करने में सक्षम है। अपने हृदय-मन्दिर में परपूज्य गुरुदेव की प्राण-प्रतिष्ठा करके, जो भावभरे मन से गुरुगीता का पाठ करेंगे, उनका अस्तित्व गुरुदेव के दुर्लभ आशीषों की वृष्टि से भीगता रहेगा। गुरुगीता उन्हें प्यारे सद्गुरु की दुर्लभ अनुभूति कराती रहेगी। ऐसे श्रद्धावान शिष्यों की आंखों से करुनामय परमपूज्य गुरुदेव की झांकी कभी ओझल न होगी।







(द्वारा: अखंड ज्योति)

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