Friday, November 14, 2008

धर्म और अध्यात्म के नाम पर केवल कूड़ा-कबाड़ा ही बिकता पाया जाता है। आत्मा की भावनाओ की भूख और प्यास बुझाने वाला तत्त्व दर्शन प्रबुद्ध वर्ग की महती आवश्यकता है। इसकी पूर्ति हो सके तो परमार्थ की दिशा में चलने की आकुल आत्माओ को, सही दिशा मिल सकेगी और पग-पग पर प्रस्तुत भटको से भावनाओं और साधनों की होने वाली दयनीय बर्बादी की रोका जा सकेगा। कलम तो इस दिशा में भी उठानी है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ, सदाचार, परिवार, अर्थ विज्ञान, कुटीर उद्योग, कृषि, पशुपालन, आहार-विहार, लोकसेवा, समाज विज्ञान, मनःशास्त्र आदि असंख्य विषयों पर ऐसा साहित्य लिखा जाना है, जो युग की पृष्ठभूमि विनिर्मित करने में सहायक हो सके।

अब तक जो लिखा गया है, छापा गया है, उसका आधार प्रायः भौतिकतावादी पाश्चात्य दर्शन है, जिसमे उत्थान का नही, पतन का ही दिशा निर्देश भरा पड़ा है। अवन्छियता की तुलना में वन्छियता को जब तक खड़ा न किया जाएगा तब तक बौद्धिक क्षेत्र में बह रही उलटी गंगा में उलटी रीति से बहने का ही क्रम जरी रहेगा। बौद्धिक क्रांति की आवश्यकता पूर्ति के लिए हमे न केवल कथा-साहित्य, वरन व्यक्ति को प्रभावित करने वाले, समस्त आधारों को उत्कृष्टता की दिशा देने वाले साहित्य का सृजन करना पड़ेगा। सृजन ही नही, प्रकाशन, मुद्रण और विक्रय के विभिन्न साधन जुटाने पड़ेंगे।






(द्वारा: अखंड ज्योति)

Wednesday, November 12, 2008

भाग्य ने जहाँ छोड़ दिया है, वही पड़ गए और कहने लगे की क्या करें, किस्मत साथ नही देती, सभी हमारे खिलाफ हैं, प्रतिद्वंदिता पर तुले हैं, जमाना बड़ा बुरा आ गया है। यह मानव की अज्ञानता के द्योतक पुरुषार्थहीनता विचार हैं, जिन्होंने अनेक जीवन बिगाड़े हैं। मनुष्य भाग्य के हाथ की कठपुतली है, खिलौना है, वह मिट्टी है, जिसे समय-असमय यों ही मसल डाला जा सकता है। ये भाव अज्ञान मोह एवं कायरता के प्रतीक हैं।

अपने अन्तःकरण में जीवन के बीज बोओं तथा सहस, पुरुषार्थ, सत्संकल्पों के पौधों को जल से सींचकर फलित-पुष्पित करो। साथ ही अकर्मण्यता की घास-फूस को छांट-छांटकर उखाड़ फेंको। उमंग, उल्लास की वायु की हिलोरें उड़ाओ।

आप अपने जीवन के भाग्य, परिस्थितियों, अवसरों के स्वयं निर्माता हैं। स्वयं जीवन को उन्नत या अवनत कर सकते हैं। जब आप सुख-संतोष के लिए प्रयत्न शील होते हैं, वैसी ही मानसिक धारा में निवास करते हैं, तो संतोष और सुख आपके मुखमंडल पर छलक उठता है। जब आप दुखी, क्लांत रहते हैं, तो जीवनवृत्त मुरझा जाता है और शक्ति का ह्रास हो जाता है।

शक्ति की, प्रेम की, बल और पौरुष की बात सोचिए, संसार के श्रेष्ठ वीर पुरुषों की तरह स्वयं परिस्थितियों का निर्माण कीजिये। अपनी दरिद्रता, न्यूनता, कमजोरी को दूर करने की सामर्थ्य आप में है बस केवल आतंरिक शक्ति प्रदीप्त कीजिये।



(द्वारा: अखंड ज्योति)