धर्म और अध्यात्म के नाम पर केवल कूड़ा-कबाड़ा ही बिकता पाया जाता है। आत्मा की भावनाओ की भूख और प्यास बुझाने वाला तत्त्व दर्शन प्रबुद्ध वर्ग की महती आवश्यकता है। इसकी पूर्ति हो सके तो परमार्थ की दिशा में चलने की आकुल आत्माओ को, सही दिशा मिल सकेगी और पग-पग पर प्रस्तुत भटको से भावनाओं और साधनों की होने वाली दयनीय बर्बादी की रोका जा सकेगा। कलम तो इस दिशा में भी उठानी है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ, सदाचार, परिवार, अर्थ विज्ञान, कुटीर उद्योग, कृषि, पशुपालन, आहार-विहार, लोकसेवा, समाज विज्ञान, मनःशास्त्र आदि असंख्य विषयों पर ऐसा साहित्य लिखा जाना है, जो युग की पृष्ठभूमि विनिर्मित करने में सहायक हो सके।
अब तक जो लिखा गया है, छापा गया है, उसका आधार प्रायः भौतिकतावादी पाश्चात्य दर्शन है, जिसमे उत्थान का नही, पतन का ही दिशा निर्देश भरा पड़ा है। अवन्छियता की तुलना में वन्छियता को जब तक खड़ा न किया जाएगा तब तक बौद्धिक क्षेत्र में बह रही उलटी गंगा में उलटी रीति से बहने का ही क्रम जरी रहेगा। बौद्धिक क्रांति की आवश्यकता पूर्ति के लिए हमे न केवल कथा-साहित्य, वरन व्यक्ति को प्रभावित करने वाले, समस्त आधारों को उत्कृष्टता की दिशा देने वाले साहित्य का सृजन करना पड़ेगा। सृजन ही नही, प्रकाशन, मुद्रण और विक्रय के विभिन्न साधन जुटाने पड़ेंगे।
(द्वारा: अखंड ज्योति)
Friday, November 14, 2008
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