Monday, June 15, 2009

संत का सान्निध्य अनूठा है। इसके रहस्य गहरे हैं। संत के सान्निध्य में जो दृश्य घटित होता है, वह थोड़ा है, लेकिन जो अदृश्य में घटता है, वह ज्यादा है। उअका महत्व और मोल अनमोल है। संत का सानिध्य नियमित होता रहे, इसमे निरंतरता बनी रहे तो अपने आप ही जीवनक्रम बदलने लगता है। मन में जड़ जमाये बैठी आस्थाएँ, मान्यताएं, आग्रह फ़िर से उलटकर सीधे होने लगते हैं। संत के सानिध्य में विचार परिवर्तन, जीवन परिवर्तन के क्रांति स्फुलिंग यों ही उड़ते रहते हैं। इनके दाहक स्पर्श से जीवन की अवांछनीयताओं का दहन हुए बिना नहीं रहता है।


संत के सानिध्य में सत् का सत्य बोध अनायास हो जाता है, पर यह हो पता है- संत के चित के कारन, उसके चैतन्य-प्रवाह की वजह से। इस सम्बन्ध में बड़ा पावन प्रसंग है- संत फरीद के जीवन का। बिलाल नाम के व्यक्ति को कुछ षड्यंत्रकारी लोगों ने उनके पास भेजा। उसने संत फरीद को कई तरह से परेशां करने की कोशिश की, पर वह संत रहे। संत की इस अच्राज्भारी शान्ति ने, बिलाल के मन को छू लिया और वह उन्ही के साथ रहने लगा। उसे संत के साथ रहते हुए, कई वर्ष बीत गए। इन वर्षों में उसमे कई अध्यात्मिक परिवर्तन हुए। हालाँकि उसने इसके लिए कोई साधना नही की थी। संत फरीद के एक शिष्य ने थोड़ा हैरान होते हुए, इसका रहस्य जानना चाहा। संत फरीद ने हँसतेहुए कहा- "संत का सान्निध्य स्वयं में साधना ही। संत के सान्निध्य में अदृश्य अध्यात्मिक उर्जा का प्रवाह उमड़ता रहता है और अपने आप ही संत के सान्निध्य में, अध्यात्मिक व्यक्तित्व जन्म पा जाता है।


(द्वारा: अखंड ज्योति)

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