भाग्य ने जहाँ छोड़ दिया है, वही पड़ गए और कहने लगे की क्या करें, किस्मत साथ नही देती, सभी हमारे खिलाफ हैं, प्रतिद्वंदिता पर तुले हैं, जमाना बड़ा बुरा आ गया है। यह मानव की अज्ञानता के द्योतक पुरुषार्थहीनता विचार हैं, जिन्होंने अनेक जीवन बिगाड़े हैं। मनुष्य भाग्य के हाथ की कठपुतली है, खिलौना है, वह मिट्टी है, जिसे समय-असमय यों ही मसल डाला जा सकता है। ये भाव अज्ञान मोह एवं कायरता के प्रतीक हैं।
अपने अन्तःकरण में जीवन के बीज बोओं तथा सहस, पुरुषार्थ, सत्संकल्पों के पौधों को जल से सींचकर फलित-पुष्पित करो। साथ ही अकर्मण्यता की घास-फूस को छांट-छांटकर उखाड़ फेंको। उमंग, उल्लास की वायु की हिलोरें उड़ाओ।
आप अपने जीवन के भाग्य, परिस्थितियों, अवसरों के स्वयं निर्माता हैं। स्वयं जीवन को उन्नत या अवनत कर सकते हैं। जब आप सुख-संतोष के लिए प्रयत्न शील होते हैं, वैसी ही मानसिक धारा में निवास करते हैं, तो संतोष और सुख आपके मुखमंडल पर छलक उठता है। जब आप दुखी, क्लांत रहते हैं, तो जीवनवृत्त मुरझा जाता है और शक्ति का ह्रास हो जाता है।
शक्ति की, प्रेम की, बल और पौरुष की बात सोचिए, संसार के श्रेष्ठ वीर पुरुषों की तरह स्वयं परिस्थितियों का निर्माण कीजिये। अपनी दरिद्रता, न्यूनता, कमजोरी को दूर करने की सामर्थ्य आप में है बस केवल आतंरिक शक्ति प्रदीप्त कीजिये।
(द्वारा: अखंड ज्योति)
Wednesday, November 12, 2008
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3 comments:
अच्छा लिखा है आपने. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
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