Friday, October 24, 2008

उपासना प्रतिदिन करनी चाहिए। जिसने सूरज - चाँद बनाये, फूल, फल और पौधे उगाये, कई वर्ण, कई जाती के प्राणी बनाये, उसके समीप बैठेंगे नही तो विश्व की यथार्थता का पता कैसे चलेगा ? शुद्ध हृदय से कीर्तन, भजन, प्रवचन में भाग लेना प्रभु की स्तुति है। उससे अपने देह, मन और बुद्धि के वे सूक्ष्म संस्थान जाग्रत होते हैं जो मनुष्य को सफल सदगुनी बनाते हैं। उपासना का जीवन विकास से अद्वितीयी सम्बन्ध है।

केवल प्रार्थना ही प्रभु का स्तवन नही है। हम कर्म से भी भगवान की उपासना कर सकते हैं। भगवान कोई मनुष्य नही है, वह तो सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान क्रियाशील सत्ता है। इसलिए उपासना का आभाव रहने पर भी उसके निमित्त कर्म करने वाला मनुष्य बहुत शीघ्र आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है। लकड़ी काटना, सड़क के पत्थर तोड़ना, मकान की सफाई, सजावट और खलिहान में अन्न निकलना आदि भी भगवान की ही स्तुति है। हम यह सारे कार्य इस आशय से करें कि इससे विश्वात्मा का कल्याण होगा। कर्तव्य भावना से किए गए कार्यों एवं परोपकारों से भगवान जितना प्रसन्न होता है, उतना कीर्तन - भजन से नहीं। स्वार्थ के लिए नहीं, असंतोष के लिए किए गए कर्म से बढ़ कर फलदायक ईश्वर कि भक्ति और कोई दूसरी नही हो सकती।

पूजा करते समय हम यह कहते हैं- हे प्रभु ! तू मुझे ऊपर उठा, मेरा कल्याण कर, मेरी शक्तियों को सर्वव्यापी बना दे और कर्म करते समय हमारी भावना यह रहती है - हे प्रभु ! तुम मुझे इतनी शक्ति दो, इतना ज्ञान दो, वैभव और वर्चस्व दो कि वह कम विकसित प्राणियों कि सेवा में काम आए।


(द्वारा: अखंड ज्योति)