Wednesday, October 22, 2008


!! ॐ भूर्भुवः स्वः तत्स्वितुर्वरेंयम भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् !!


हम सिर्फ इस मंत्र को कह लेने, बोल लेने, उच्चारण कर लेने से अपने आपको बड़े गुणी और ज्ञानवान समझने लगते हैं. पर ऐसा नही है आइये आज हम और आप मिल कर इस मंत्र का मतलब भी जान लें. जिससे परमात्मा को याद करने का सही अर्थ जान सकें.

- परमात्मा का ही पवित्र अंश मेरी आत्मा है।

भूः - परमात्मा प्राणस्वरूप है। मैं भी अपने को प्राणवान, आत्मशक्ति संपन्न बनाऊंगा.

भुवः - प्रभु दुःख रहित हैं. मैं दुःखदायी मार्ग पर न चलूँ.

स्वः - ईश्वर आनंदस्वरूप हैं। अपने जीवन को आनंदस्वरूप बनाना तथा दूसरो के आनंद में वृद्धि करना मेरा कर्त्तव्य है।

तत् सवितुः - वह भगवान तेजस्वी है। मैं भी निर्भीक, साहसी, वीर, पुरुषार्थी और प्रतिभावान बनूँगा।

वरेण्यं - ब्रह्म श्रेष्ठ हैं। श्रेष्ठता, आदर्शवादिता एवं सिद्ध्न्त्माया जीवन नीति अपनाकर मैं भी श्रेष्ठ ही बनूँगा।

भर्गः - जगदीश्वर निष्पाप है। मैं भी पापों से, कुविचारों से और कुकर्मो से बचकर रहूँगा।

देवस्य - ईश्वर दिव्य है। मैं भी अपने को दिव्य गुणों से सुसज्जित करूँगा, संसार को कुछ देते रहने की दिव्य नीति अपनाऊंगा।
धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् - मैं उपर्युक्त गुणों को धारण करूँगा। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह मुझे सन्मार्ग पर चलने कि बुद्धि प्रदान करें।


(द्वारा: अखंड ज्योति)

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