Sunday, October 19, 2008

व्यक्ति दूरों के विषय में अधिकाधिक जानने की कोशिश करे या उनकी भावनाओं से परिचित होना चाहे उससे पहले अपने विषय में अधिकाधिक जान लेना चाहिए। अपने मन की भाषा को, अपनी आकाँक्षाओं-भावनाओं को बहुत स्पष्ट रूप से समझा, सुना और परखा जा सकता है। अपने बारे में जानकर अपनी सेवा करना, आत्मसुधार करना अधिक सरल है, बनिस्बत इसके किहम औरों को, सारी दुनिया को बदलने का प्रयास करें। जितना हम अपने अंतःकरण का परिमार्जन और सुधार कर लेंगे, यह संसार हमे उतना ही सुधार हुआ परिलक्षित होने लगेगा।

हम दर्पण में अपना मुख देखते हैं एवं चेहरे कि मलिनता को प्रयत्नपूर्वक साफ कर उसे सुंदर बना डालते हैं। मुख उज्जवल, साफ और अधिक सुंदर निकल आता है। मन कि प्रसन्नता बढ़ जाती है। अंतःकरण भी एक मुख है। उसे चेतना के दर्पण और उसे भलीभांति परखने से उसकी मलिनताएँ भी दिखाई देन लगती हैं, साथ ही सौंदर्य भी। कमियों को दूर करना, मलिनता को मिटाना और आत्मनिरीक्षण द्वारा पार्ट दर गन्दगी को हटा कर आत्मा के अनंत सौंदर्य को प्रकट करना सच्ची उपासना है जब सारी मलिनताएँ निकल जाती हैं तो आत्मा उज्जवल, साफ, सुन्दर स्वरुप परिलक्षित होने लगा है। फिर बहिरंग में सभी कुछ अच्छा सत्, चित्, आनंदमय नज़र आने लगता है।





(द्वारा: अखंड ज्योति)

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